+ खोटे उपदेश के प्रभाव से अत्यन्त दुर्लभ धर्म भी व्यर्थ -
न्यायादन्धकवर्तकीयकजना, ऽऽख्यानस्य संसारिणां;
प्राप्तं वा बहुकल्पकोटिभिरिदं, कृच्छ्रान्नरत्वं यदि ।
मिथ्यादेवगुरूपदेशविषय, - व्यामोहनीचाऽन्वय;
प्रायै: प्राणभृतां तदेव सहसा, वैफल्यमागच्छति ॥167॥
अन्धे को बटेर मिल जाए, वैसे ही संसारी को ।
कोटि कल्पकालों में दुर्लभ, प्राप्त करे इस नर-तन को ।
मिथ्या देव-गुरु उपदेश, विषय-व्यामोह नीच-कुल में ।
अज्ञानी प्राणी का नरभव, जाता है निष्फलता में ॥
अन्वयार्थ : प्रथम तो मनुष्य जन्म पाना संसार में अत्यन्त कठिन काम है, दैवयोग से अन्धे के हाथ में बटेर के समान करोड़ों कल्पकाल के बाद यदि इस अत्यन्त दुःसाध्य मनुष्य जन्म की प्राप्ति भी हो जाए तो वह मनुष्य जन्म, खोटे देव तथा गुरुओं के उपदेश से निष्फल चला जाता है तथा विषयों में आसक्तता तथा व्यसनादि नीच कार्य करने में भी वह बात ही बात में व्यर्थ चला जाता है ।