+ तिर्यञ्च आदि गतियों से मनुष्य जन्म की श्रेष्ठता -
(वसन्ततिलका)
लब्धे कथं कथमपीह मनुष्यजन्म;
न्यङ्ग प्रसंगवशतो हि कुरु स्वकार्य् ।
प्राप्तं तु कामपि गतिं कुमते तिरश्चां;
कस्त्वां भविष्यति विबोधयितुं समर्थः ॥168॥
दैवयोग से किसी तरह, नर-भव पाया कर लो निज-कार्य ।
तिर्यञ्चादि कुगति में जाए, वहाँ कौन तुझको समझाय ॥
अन्वयार्थ : हे भव्य जीव! बड़े पुण्यकर्म के उदय से तुझे इस मनुष्य जन्म की प्राप्ति हुई है, इसलिए शीघ्र ही कोई अपने हित का करने वाला काम कर । नहीं तो रे मूर्ख! जब तू तिर्यंच आदि खोटी गति को प्राप्त हो जाएगा तो वहाँ पर तुझे कोई समझा भी नहीं सकेगा ।