
पलितैकदर्शनादपि, सरति सतश्चित्तमाशु वैराग्यम् ।
प्रतिदिनमितरस्य पुनः, सह जरया वर्धते तृष्णा ॥171॥
श्वेत केश दर्शन करने से, सज्जन को होता वैराग्य ।
प्रतिदिन अज्ञानी देखे पर, बढ़े बुढ़ापा अरु तृष्णा ॥
अन्वयार्थ : जो पुरुष ज्ञानी हैं, वे तो सफेद केश को देखते ही वैराग्य को प्राप्त हो जाते हैं; किन्तु जो ज्ञानरहित हैं, उनको तो जैसे-जैसे सफेद केशों का दर्शन होता जाता है, वैसे-वैसे उनकी तृष्णा और भी बढ़ती जाती है और उनको वैराग्य की बात भी बुरी लगती है ।