+ काल-बली के सामने महासमर्थ राजा की सेना भी असहाय -
तावद्वल्गति वैरिणां प्रति चमू:, तावत्परं पौरुषं;
तीक्ष्णस्तावदसिर्भुजौ दृढतरौ, तावच्च कोपोद्गमः ।
भूपस्याऽपि यमो न यावददयः, क्षुत्पीडितः सम्मुखं;
धावत्यन्तरिदं विचिन्त्य विदुषा, तद्रोधको मृग्यते ॥175॥
शत्रु समक्ष उछलती सेना, पौरुष भी होता उत्कृष्ट ।
क्रोधोद्धत तलवार चमकती, उभय भुजाएँ दृढ़ तब तक॥
जब तक निर्दय क्षुत्पीड़ित, यमराज नहीं सन्मुख आये ।
बुधजन मन में यह विचार कर, यम-निग्रह-कारक खोजें ॥
अन्वयार्थ : जब तक क्षुधा से पीड़ित यह निर्दयी काल सामने नहीं आता, तभी तक राजा की सेना भी जहाँ-तहाँ उछलती फिरती हैं, उसका उत्कृष्ट पौरुष भी मालूम पड़ता है, उसकी तलवारें भी शत्रुओं का नाश करने के लिए खूब पैनी बनी रहती हैं, उसकी भुजाएँ भी बलवान रहती है और उसके कोप का भी उदय रहता है; परन्तु जिस समय वह काल-बली, उसके सामने पड़ जाता है, तब ऊपर लिखी हुई बातों में से एक भी बात नहीं होती - ऐसा भलीभाँति विचार कर विद्वान् पुरुष, उस काल के रोकने वाले धर्म को ढूँढते हैं ।