+ धर्म के प्रभाव से ही स्वर्ग, इन्द्रपना आदि पदों की प्राप्ति -
स स्वर्गः सुख-रामणीयक-पदं, ते ते प्रदेशाः पराः;
सारा सा च विमान-राजिरतुल,-प्रेङ्खत्पताका-पटा: ।
ते देवाश्च पदातयः परिलसत्, तन्नन्दनं ताः स्त्रियः;
शक्रत्वं तदनिन्द्यमेतदखिलं, धर्मस्य विस्फूर्जितम् ॥180॥
सुख से जो रमणीय हुआ, वह स्वर्ग और उसके स्थान ।
जिन पर फहरे ध्वजा मनोहर, ऐसे सुन्दर देव-विमान ॥
देवों की पैदल सेना, सुर-नारी अरु नन्दन-कानन ।
महिमामय इन्द्रत्व आदि सब, अहो ! धर्म का ही वरदान ॥
अन्वयार्थ : सुख तथा सुन्दरता के अद्वितीय स्थान स्वर्ग और महा मनोहर स्वर्गों के प्रदेश, जिनके ऊपर अनुपम पताका उड़ रही है - ऐसे विमानों की पंक्तियाँ और प्यादे स्वरूप देवतागण, मनोहर नन्दन वन, मनोहर देवांगनाएँ तथा अत्यन्त निर्मल इन्द्रपना इत्यादि समस्त विभूतियाँ, धर्म के ही माहात्म्य से मिलती हैं; इसलिए ऐसे पवित्र धर्म का आराधन, भव्य जीवों को अवश्य करना चाहिए ।