+ धर्म के प्रभाव से ही चक्रवर्ती आदि पदों की प्राप्ति -
यत् षट्खण्ड-मही नवोरु-निधयो, द्विःसप्त-रत्नानि यत्;
तुङ्गा यद्द्विरदा रथाश्च चतुरा,ऽशीतिश्च लक्षाणि यत् ।
यच्चाऽष्टादश-कोटयश्च तुरगा, योषित्सहस्राणि यत्;
षड्युक्ता नवतिर्यदेकविभुता, तद्धाम धर्मप्रभो: ॥181॥
जो षट्खण्ड मही, नव-निधियाँ, चौदह-रत्न प्राप्त होते ।
चौरासी लख रथ विशाल, हाथी चौरासी लख होते ॥
कोड़ि अठारह घोड़े सुन्दर, छियानवे हजार नारी ।
चक्री वैभव मिले धर्म से, अत: धर्म-महिमा भारी ॥
अन्वयार्थ : छह खण्ड की पृथ्वी, बड़ी-बड़ी नौ निधियाँ, समस्त सिद्धियों के करने वाले चौदह रत्न, चौरासी लाख बड़े-बड़े हाथी, विमान के समान चौरासी लाख बड़े-बड़े रथ, अठारह करोड़ पवन के समान चंचल घोड़े, देवांगना के समान छियानवे हजार स्त्रियाँ तथा इन समस्त विभूतियों का चक्रवर्तीपना इत्यादि समस्त विभूतियाँ धर्म के प्रताप से ही मिलती हैं । इसलिए भव्य जीवों को ऐसे धर्म की आराधना अवश्य करना चाहिए ।