+ संसार में पुण्योदय का प्रभाव -
(वसन्ततिलका)
दूरादभीष्टमभिगच्छति पुण्ययोगात्;
पुण्याद्विना करतलस्थमपि प्रयाति ।
अन्यत् परं प्रभवतीह निमित्तमात्रं;
पात्रं बुधा भवत निर्मलपुण्यराशेः ॥188॥
पुण्योदय से दूर-स्थित, वस्तु भी मिले सहज जग में ।
पुण्योदय बिन वस्तु नष्ट, हो जाती यदि हो करतल में ॥
अन्य सभी जग के पदार्थ तो, निमित्त मात्र ही होते हैं ।
यह निश्चय कर भव्य जीव सब, विमल पुण्य के भाजन हों ॥
अन्वयार्थ : पुण्य के उदय से दूर रही हुई वस्तु भी अपने आप आकर प्राप्त हो जाती है; किन्तु जब पुण्य का उदय नहीं रहता, तब हाथ में रखी हुई वस्तु भी नष्ट हो जाती है । यदि पुण्य-पाप से भिन्न कोई दूसरा पदार्थ सुख-दुःख का देने वाला है तो वह केवल निमित्त मात्र है; इसलिए हे भव्य जीवों! तुम निर्मल पुण्य के पात्र बनो ।