+ पापोदय के दुष्ट प्रभाव -
बन्ध-स्कन्ध-समाश्रितां सृणिभृता,-मारोहकाणामलं;
पृष्ठे भार-समर्पणं कृतवतां, सञ्चालनं ताडनम् ।
दुर्वाचं वदतामपि प्रतिदिनं, सर्वं सहन्ते गजा;
निःस्थाम्नां बलिनोऽपि यत्तदखिलं, दुष्टो विधिश्चेष्टते ॥190॥
हाथी को सांकल से बाँधें, ऊपर चढ़ भार लादें ।
अंकुश मारें और महावत, भाँति-भाँति दुर्वचन कहें ॥
छेदन-भेदन-ताड़न सब कुछ, सहते बलशाली गजराज ।
निर्बल से भी प्रतिदिन यह, है एकमात्र दुर्दैव प्रभाव ॥
अन्वयार्थ : यद्यपि महावत की अपेक्षा हाथी बलवान होते हैं तो भी महावत उनको बाँधते हैं, उनके ऊपर चढ़ते हैं, उन्हें अंकुश भी मारते हैं, उनकी पीठ पर बोझा भी लादते हैं, उनको अपनी इच्छानुसार चलाते हैं, ताड़ना करते हैं, प्रतिदिन उनको गाली भी देते हैं और उन हाथियों को ये सब बातें सहनी पड़ती हैं; इसी प्रकार उत्तम पुरुषों पर नीच पुरुष भी अपना प्रभाव डालते हैं । उक्त समस्त चेष्टाएँ दुष्ट कर्म की हैं (पाप के द्वारा ही ये सब बातें होती हैं); इसलिए भव्यों को चाहिए कि वे सदा पुण्य का ही उपार्जन करें तथा पाप का नाश करें ।