
धर्मः श्री-वश-मन्त्र एष परमो, धर्मश्च कल्पद्रुमो;
धर्मः कामगवीप्सित-प्रद-मणि,-धर्मः परं दैवतम् ।
धर्मः सौख्य, परम्पराऽमृत-नदी-सम्भूति-सत्पर्वतो;
धर्मो भ्रातरुपास्यतां किमपरैः, क्षुद्रैरसत्कल्पनैः॥195॥
लक्ष्मी को वश करे मन्त्र यह, धर्म कल्पतरु-फलदाता ।
कामधेनु है चिन्तामणि है, धर्म देव सबसे ऊँचा ॥
धर्म शिखर से सुखरूपी, अमृत की सरिता नित्य बहे ।
हे भाई, तुम धर्म करो, क्या लाभ व्यर्थ मिथ्या भ्रम से ?
अन्वयार्थ : समस्त प्रकार की लक्ष्मी को देने वाला होने के कारण यह धर्म, लक्ष्मी को वश करने के लिए मन्त्र के समान है । यह धर्म, वांछित चीजों को देने वाला कल्पवृक्ष है । धर्म ही कामधेनु है । धर्म ही समस्त चिन्ताओं को पूर्ण करने वाला चिन्तामणि रत्न है । धर्म ही उत्कृष्ट देवता है । धर्म ही उत्कृष्ट सुखों की राशिरूपी अमृत नदी को उत्पन्न करने में पर्वत के समान है । इसलिए अरे भाइयों! व्यर्थ नीच कल्पनाएँ करके क्या? केवल धर्म ही का सेवन करो, जिससे तुम्हारे सर्व कार्य सिद्ध हो जाएँ ।