
प्राप्तेऽपि दुर्लभतरेऽपि मनुष्यभावे,
स्वप्नेन्द्रजालसदृशेऽपि हि जीवितादौ ।
ये लोभकूपकुहरे पतिताः प्रवक्ष्ये,
कारुण्यतः खलु तदुद्धरणाय किञ्चित्॥4॥
दुर्लभ नरभव पाकर जीवन, यौवन आदिक स्वप्न समान ।
लोभ-कूप में गिरे हुए को, कहूँ दया से सम्बोधन॥
अन्वयार्थ : अत्यन्त दुर्लभ मनुष्य जन्म को पाकर, स्वप्न और इन्द्रजाल के समान जीवन, यौवन आदि के होने पर भी जो मनुष्य, लोभरूपी कुए में गिरे हुए हैं, उनके उद्धार के लिए आचार्य कहते हैं कि मैं दयाभाव से कुछ कहूँगा ।