
कान्ताऽत्मजद्रविणमुख्यपदार्थसार्थ-,
प्रोत्थातिघोरघनमोहमहासमुद्रे ।
पोतायते गृहिणि सर्वगुणाधिकत्वात्,
दानं परं परमसात्त्विकभावयुक्तम्॥5॥
स्त्री-पुत्र-धनादिक से, उत्पन्न मोहमय गृह आश्रम ।
तरने हेतु जहाज श्रेष्ठ है, सद्भावों से देना दान॥
अन्वयार्थ : स्त्री-पुत्र-धन आदि जो मुख्य पदार्थों का समूह, उससे उत्पन्न हुआ जो अत्यन्त घोर तथा प्रचुर मोह, उसके विशाल समुद्रस्वरूप इस गृहस्थाश्रम से पार होने के लिए परम सात्त्विक भाव से दिया हुआ तथा सर्व गुणों में अधिक - ऐसा उत्कृष्ट दान ही जहाज के समान है ।