भावार्थ :
विशेषार्थ- जो मेघ गरजते तो हैं, किंतु जलहीन होने से बरसते नहीं हैं, वे सरलता से पाये जाते हैं। परन्तु जो जल से परिपूर्ण होकर वर्षा करने के उन्मुख हैं, वे दुर्लभ ही होते हैं। ठीक इसी प्रकार से जो उपदेशक अर्थहीन अथवा अनर्थकारी उपदेश करते हैं वे तो अधिक मात्रा में प्राप्त होते हैं किंतु जो स्वयं मोक्षमार्ग में प्रवृत्त होकर दयार्द्रचित्त होते हुए अन्य उन्मार्गगामी प्राणियों को उससे उद्धार करनेवाले सदुपदेश को करते हैं वे कठिनता से ही प्राप्त होते हैं। ऐसे ही उपदेशकों का प्रयत्न सफल होता है ॥४॥ |