+ सच्चे उपदेशों की दुर्लभता -
जना घनाश्च वाचालाः सुलभाः स्युर्वथोत्थिताः।
दुर्लभा ह्यन्तरार्द्रास्ते जगदभ्युज्जिहीर्षवः ॥४॥
अन्वयार्थ : जिनका उत्थान (उत्पत्ति और प्रयत्न) व्यर्थ है ऐसे वाचाल मनुष्य और मेघ दोनों ही सरलता से प्राप्त होते हैं। किन्तु जो भीतर से आर्द्र (दयालु और जल से पूर्ण ) होकर जगत का उद्धार करना चाहते हैं ऐसे वे मनुष्य और मेघ दोनों ही दुर्लभ हैं ॥४॥
Meaning : Noisy (garrulous, vācāla) men and (thundering) clouds, with no purposeful consequence, are common; only the moist (kind-hearted, ārdra) men and (rain-bearing) clouds that benefit the world are rare.

  भावार्थ 

भावार्थ :

विशेषार्थ- जो मेघ गरजते तो हैं, किंतु जलहीन होने से बरसते नहीं हैं, वे सरलता से पाये जाते हैं। परन्तु जो जल से परिपूर्ण होकर वर्षा करने के उन्मुख हैं, वे दुर्लभ ही होते हैं। ठीक इसी प्रकार से जो उपदेशक अर्थहीन अथवा अनर्थकारी उपदेश करते हैं वे तो अधिक मात्रा में प्राप्त होते हैं किंतु जो स्वयं मोक्षमार्ग में प्रवृत्त होकर दयार्द्रचित्त होते हुए अन्य उन्मार्गगामी प्राणियों को उससे उद्धार करनेवाले सदुपदेश को करते हैं वे कठिनता से ही प्राप्त होते हैं। ऐसे ही उपदेशकों का प्रयत्न सफल होता है ॥४॥