+ धर्माचरण की प्रेरणा -
पापाद् दुःखं धर्मात् सुखमिति सर्वजनसुप्रसिद्धमिदम् ।
तस्माद्विहाय पावं चरतु सुखार्थी सदा धर्मम् ॥८॥
अन्वयार्थ : पाप से दुख और धर्म से सुख होता है, यह बात सब जनों में भले प्रकार प्रसिद्ध है-इसे सब ही जानते हैं। इसलिये जो भव्य प्राणी सुख की अभिलाषा करता है उसे पाप को छोडकर निरन्तर धर्म का आचरण करना चाहिये॥८॥
Meaning : It is well-known that demerit (pāpa) begets suffering and merit (dharma, puõya) begets happiness. Therefore, the potential (bhavya) soul seeking happiness must refrain from demerit and follow incessantly the conduct that leads to merit (dharma).

  भावार्थ 

भावार्थ :