+ सम्यग्दर्शन से ही मंदकषाय, शास्त्रज्ञान, चारित्र और तप की पूज्यता -
शमबोधवृत्ततपसां पाषाणस्येव गौरवं पुंसः ।
पूज्यं महामणेरिव तदेव सम्यक्त्वसंयुक्तम् ॥१५॥
अन्वयार्थ : पुरुष के सम्यक्त्व से रहित शान्ति, ज्ञान, चारित्र और तप इनका महत्त्व पत्थर के भारीपन के समान व्यर्थ है। परन्तु वही उनका महत्त्व यदि सम्यक्त्व से सहित है तो वह मूल्यवान् मणि के महत्व के समान पूजनीय है॥१५॥
Meaning : In the man without right faith (samyagdarśana), these – calmness (śama), knowledge (jñāna), conduct (cāritra) and austerity (tapa) – do not have much value, like the heavy stone; in the man with right faith, these become adorable (valuable), like the precious gem.

  भावार्थ 

भावार्थ :

विशेषार्थ- साधारण पाषाण और मणिरूप पाषाण ये दोनों यद्यपि पाषाणस्वरूपसे समान हैं, फिर भी गुण की अपेक्षा उन दोनों में महान् अन्तर है । कारण कि यदि किसी मनुष्य के पास विशाल भी साधारण पाषाण हो तो उससे उसका कोई भी अभीष्ट सिद्ध होने वाला नहीं है, बल्कि वह उसके लिये भारभूत (कष्टप्रद) ही बना रहता है। किन्तु जिसके पास वह मणिरूप पाषाण है वह उससे अपने अभीष्ट प्रयोजन को अवश्य सिद्ध कर लेता है। कारण कि उसका मूल्य बहुत अधिक है । इससे उसकी जनसमुदायमें प्रतिष्ठा भी अधिक होती है । ठीक इसी प्रकार से जो जीव सम्यग्दर्शन से रहित है वह भले ही शान्ति, ज्ञान, चारित्र एवं तप का भी आचरण क्यों न करे; किन्तु इससे वह कल्याण के मार्ग में नहीं प्रवृत्त हो पाता है । कारण कि सम्यग्दर्शन के बिना उक्त शान्ति आदि का कोई मूल्य नहीं होता। किन्तु मणि के समान बहुमूल्य सम्यग्दर्शन को प्राप्त कर लेने पर उन सब शान्ति आदि का महत्त्व बढ जाता है। उस समय वे प्राणी को मोक्षमार्ग में प्रवृत्त करके शाश्वतिक सुख की प्राप्ति में सहायक हो जाते हैं । अतएव उक्त शान्ति आदि की अपेक्षा सम्यग्दर्शन ही विशेष पूज्य है ॥१५॥