भावार्थ :
विशेषार्थ- जिस प्रकार कठिन रोग से ग्रस्त हुआ बालक अपने हित-अहित को न समझ सकने के कारण जब उस रोग को नष्ट करनेवाली किसी तीक्ष्ण औषधि को नहीं लेना चाहता है तब चतुर वैद्य बताशा आदि में औषधि को रखकर अथवा वस्त्र आदि में उसका प्रयोग करके सरलता से उसकी चिकित्सा करता है। उसी प्रकार मिथ्यात्वरूप रोग से ग्रस्त हुआ प्राणी जब अपने हित-अहित का विवेक न होनेसे दुद्धर तपश्चरण आदि में असमर्थ होता है तब उसके हित को चाहने वाला गुरु सर्व प्रथम उसके लिये इस सम्यक्त्व आराधना का उपदेश करता है। कारण कि इसका वह सरलता से आराधना कर सकता है। इसके अतिरिक्त वह (सम्यक्त्व) आगे की क्रियाओं (संयम व तप आदि) का मूल कारण भी है ॥१६॥ |