+ सुकुमार (सरल) क्रिया करने का उपदेश -
मिथ्यात्वातङ्कवतो हिताहितप्राप्त्यनाप्तिमुग्धस्य ।
बालस्येव तवेयं सुकुमारैव क्रिया क्रियते ॥१६॥
अन्वयार्थ : मिथ्यात्वरूप रोग से सहित होकर हित की प्राप्ति और अहित के परिहार को न समझ सकने वाले बालक के समान तेरे लिये यह सम्यक्त्वआराधनारूप सरल चिकित्सा की जाती है ॥१६॥
Meaning : This gentle remedy (as the clever doctor mixes his medicine in a sweet syrup when giving it to a child) of adoration (ārādahanā) of right faith (samyagdarśana) is being administered to you, suffering from the disease of wrong-belief (mithyātva) and unable to discriminate between what is good and what is bad.

  भावार्थ 

भावार्थ :

विशेषार्थ- जिस प्रकार कठिन रोग से ग्रस्त हुआ बालक अपने हित-अहित को न समझ सकने के कारण जब उस रोग को नष्ट करनेवाली किसी तीक्ष्ण औषधि को नहीं लेना चाहता है तब चतुर वैद्य बताशा आदि में औषधि को रखकर अथवा वस्त्र आदि में उसका प्रयोग करके सरलता से उसकी चिकित्सा करता है। उसी प्रकार मिथ्यात्वरूप रोग से ग्रस्त हुआ प्राणी जब अपने हित-अहित का विवेक न होनेसे दुद्धर तपश्चरण आदि में असमर्थ होता है तब उसके हित को चाहने वाला गुरु सर्व प्रथम उसके लिये इस सम्यक्त्व आराधना का उपदेश करता है। कारण कि इसका वह सरलता से आराधना कर सकता है। इसके अतिरिक्त वह (सम्यक्त्व) आगे की क्रियाओं (संयम व तप आदि) का मूल कारण भी है ॥१६॥