+ धर्माचरण से सुख भंग होने के भय का निराकरण -
धर्मः सुखस्य हेतुर्हेतुर्न विराधकः स्वकार्यस्य ।
तस्मात्सुखभङ्गभिया माभूधर्मस्य विमुखस्त्वम् ॥२०॥
अन्वयार्थ : धर्म सुख का कारण है और कारण कुछ अपने कार्य का विरोधी होता नहीं है। इसलिये तू सुखनाश के भय से धर्म से विमुख न हो॥२०॥
Meaning : Dharma is the cause (hetu) of happiness (sukha), and the cause (hetu) does not oppose its own effect (kārya). Therefore, fearing deprivation of happiness, you should not be indifferent to dharma.

  भावार्थ 

भावार्थ :

विशेषार्थ- धर्म के आचरण में विषयसुख का विनाश होता है, इसी आशंका का निराकरण करते हुए और भी यहां यह बतलाया है कि जब धर्म सुख का कारण है तब वह उस सुख का विघातक नहीं हो सकता है। यदि कारण ही अपने कार्य का विरोधी बन जाय तो फिर कार्य-कारणभाव को नियम व्यवस्था भी कैसे बन सकेगी? नहीं बन सकेगी । इस प्रकार से तो समस्त लोकव्यवहार का ही विरोध हो जावेगा। इसलिये धर्म से सुख का विनाश होता है, यह कल्पना भ्रमपूर्ण है ॥२०॥