धर्मादवाप्तविभवो धर्म प्रतिपाल्य भोगमनुभवतु।
बीजादवाप्तधान्यः कृषीवलस्तस्य बीजमिव॥२१॥
अन्वयार्थ : जिस प्रकार किसान बीज से उत्पन्न धान्य को प्राप्त करता हुआ उसमें से भविष्य के लिये कुछ बीज के निमित्त सुरक्षित रखकर ही उसका उपभोग करता है उसी प्रकार हे भव्य जीव ! तूने जो यह सुख-सम्पत्ति प्राप्त की है वह धर्म के ही निमित्त से प्राप्त की है, इसलिये तू भी उक्त सुखसम्पत्ति के बीजभूत उस धर्म का रक्षण करके ही उसका उपभोग कर ॥२१॥
Meaning : The farmer obtains food grain by growing the seed and while consuming food grain he preserves a part of it for future use as the seed. The prosperity that you have obtained has originated from dharma. You also consume your riches while preserving the seed, i.e., dharma.
भावार्थ