+ धर्म का फल बिना मांगे ही -
संकल्प्यं कल्पवृक्षस्य चिन्त्यं चिन्तामणेरपि ।
असंकल्प्यमसंचिन्त्यं फलं धर्मादवाप्यते ॥२२॥
अन्वयार्थ : कल्पवृक्ष का फल संकल्प (प्रार्थना) के अनुसार प्राप्त होता है तथा चिन्तामणि का भी फल चिन्ता (मनकृत विचार) के अनुसार प्राप्त होता है, परन्तु धर्म से जो फल प्राप्त होता है वह अप्रार्थित एवं अचिन्त्य ही प्राप्त होता है ॥२२॥
Meaning : The wish-fulfilling tree (kalpavÃkÈa) provides fruit according to the wish and the magical-thought-gem (cintāmaõi) provides fruit according to the thought. However, the fruit that dharma provides is automatic, beyond the wish and the thought.

  भावार्थ 

भावार्थ :

विशेषार्थ- लोक में कल्पवृक्ष और चिन्तामणि अभीष्ट फल के देने वाले माने जाते हैं । परन्तु कल्पवृक्ष जहाँ वचन द्वारा की गई प्रार्थना के अनुसार अभीष्ट फल देता है वहां चिन्तामणि मन की कल्पना के अनुसार वह फल देता है । किन्तु धर्म एक ऐसा अपूर्व पदार्थ है कि जिससे अभीष्ट फल प्राप्ति के लिये न किसी प्रकार की याचना करनी पड़ती है और न मन में कल्पना भी। तात्पर्य यह कि धर्म का आचरण करने से प्राणी को स्वयमेव ही अभीष्ट सुख प्राप्त होता है। जैसे यदि मनुष्य सघन वृक्ष के नीचे पहुंचता है तो उसे उसकी छाया स्वयमेव प्राप्त होती है,उसके लिये वृक्ष से कुछ याचना आदि नहीं करनी पडती॥२२॥