भावार्थ :
विशेषार्थ- 'शुभः पुण्यस्याशुभः पापस्य' (तत्त्वा. 6-3) इस सूत्र में आचार्यप्रवर श्री उमास्वामी ने यह बतलाया है कि शुभ योग पुण्य तथा अशुभ योग पाप के आस्रवका कारण है। यहां शुभ परिणाम से उत्पन्न मन, वचन एवं काय की प्रवृत्ति को शुभ योग तथा अशुभ परिणाम से उत्पन्न मन, वचन एवं काय की प्रवृत्ति को अशुभ योग समझना चाहिये। इस प्रकार जब पुण्य का कारण अपना ही शुभ परिणाम तथा पाप का कारण भी अपना ही अशुभ परिणाम ठहरता है तब आत्महित की अभिलाषा करने वाले भव्य जीवों को अपने परिणाम सदा निर्मल रखने चाहिये, जिससे कि उनके पुण्य का संचय और पूर्वसंचित पाप का विनाश होता रहे ॥२३॥ |