भावार्थ :
विशेषार्थ- यह प्रायः लोक में प्रसिद्ध ही है कि सच्चे शूर-वीर युद्धनीति के अनुसार ऐसे किसी भी प्राणी के ऊपर शस्त्र का प्रहार नहीं करते हैं जो कि कायरता को प्रगट कर रहा हो, अरक्षित हो, निरपराध हो सैन्य व शस्त्रादि से रहित हो, अथवा दातों में तृणों को धारण करके अपने पराजय को प्रकट कर रहा हो। इसके अतिरिक्त वे स्त्रियों और बालकों का घात तो किसी भी अवस्थामें नहीं करते हैं। परंतु खेद है कि शिकारी जन का वह कार्य इससे सर्वथा विपरीत होता है- जहां वीर पुरुष उपयुक्त अवस्थाओं में से किसी एक ही अवस्था के होने पर प्राणी का घात नहीं करते हैं. वहां शिकारी जन हिरणियों में उन सभी अवस्थाओं (कायरता, अरक्षितता, निरपराधता, शस्त्रादिहीनता, दन्तस्थतृणता और स्त्रीत्व) के रहने पर उनका निर्दयता से घात करते हैं । ऐसी अवस्था में वे अन्य सापराध प्राणियों का घात किये बिना भला कैसे रह सकते हैं? अतएव उनका कार्य सर्वथा निन्दनीय तो है ही, साथ में वह उभय लोकों में उन्हे दुःख देनेवाला भी है ॥२९॥ |