अन्धादयं महानन्धो विषयान्धीकृतेक्षणः ।
चक्षषान्धो न जानाति विषयान्धो न केनचित् ॥३५॥
अन्वयार्थ : जिसके नेत्र इन्द्रियविषयों के द्वारा अन्धे कर दिये गये हैं अर्थात् विषयों में मुग्ध रहने से जिसकी विवेकबुद्धि नष्ट हो चुकी है ऐसा यह प्राणी उस लोकप्रसिद्ध अन्धे से भी अधिक अन्धा है, क्योंकि अन्धा प्राणी तो केवल चक्षु के ही द्वारा नहीं जान पाता है, परन्तु वह विषयान्ध मनुष्य इन्द्रियों और मन आदि में से किसी के द्वारा भी वस्तुस्वरूप को नहीं जान पाता है ॥३५॥
Meaning : The one who is blinded by the sense-pleasures is more blind than the one who is called ‘blind’ in worldly parlance. The latter is unable to perceive through his eyes only but the former cannot perceive through any of his senses .
भावार्थ