वार्तादिभिर्विषयलोल विचारशून्यम्
क्लिश्नासि यन्मुहुरिहार्यपरिग्रहार्थम् ।
तच्चेष्टितं यदि सकृत्परलोकबुद्धया
न प्राप्यते ननु पुनर्जननादि दुःखम् ॥४७॥
अन्वयार्थ : हे विषयलम्पट ! तू यहां विषयों में मुग्ध होकर विवेक से रहित होता हुआ जो खेती, पशुपालन एवं व्यापार आदि के द्वारा धन कमाने के लिये बार बार कष्ट सहता है वैसी कष्टमय प्रवृत्ति परलोक की बुद्धि से अर्थात् आगामी भव को सुखमय बनाने के लिये यदि एक बार भी करता तो फिर निश्चय से बार बार जन्म-मरण आदि के दुःखको न प्राप्त करता ॥४७॥
Meaning : O pleasure-seeker! Entangled in sense-pleasures and without discrimination, you have troubled yourself, over and over again, to obtain wealth, in occupations such as farming, animal-husbandry, and commerce. If you had troubled yourself, just once, with the intention of improving your next life, you would have certainly got rid of misery borne out of repeated births and deaths.
भावार्थ