+ शरीर की बन्दीगृह से तुलना -
अस्थिस्थूलतुलाकलापघटितं नद्धं शिरास्नायुभि
श्चर्माच्छादितमस्रसान्द्रपिशितैर्लिप्तं सुगुप्तं खलैः कर्मारातिभिरायुरुद्घनिगलालग्नं शरीरालयं
कारागारमवैहि ते हतमते प्रीतिं वृथा मा कृथाः ॥५९॥
अन्वयार्थ : हे नष्टबुद्धि प्राणी! हड्डियोंरूप स्थूल लकडियों के समूह से रचित, सिराओं और नसों से सम्बद्ध, चमडा से ढका हुआ, रुधिर एवं सघन मांस से लिप्त, दुष्ट कर्मोरूप शत्रुओं से रक्षित, तथा आयुरूप भारी सांकल से संलग्न; ऐसे इस शरीररूप गृह को तू अपना कारागार (बन्दीगृह) समझकर उसके विषय में व्यर्थ अनुराग मत कर॥५९॥
Meaning : O imprudent being! Know that your body is like a prisonhouse built of bones acting as thick logs of wood, fastened
by muscles and veins, covered up by skin, plastered with
the mixture of blood and wet-flesh, guarded by the enemy
in form of evil-karmas, and confined by the heavy
shackles of age (āyuÍ). Do not have foolish fondness for
this prison-house.

  भावार्थ 

भावार्थ :

विशेषार्थ- यहां शरीर में गृह का आरोप करते हुए उसे बन्दीगृह के समान बतला कर उसमें अनुराग न रखने की प्रेरणा की गई है । बन्दीगृह से समानता बतलाने का कारण यह है कि जिस प्रकार बन्दीगृह लकडी के खम्भों आदि से निर्मित होता है उसी प्रकार यह शरीर भी हड्डियों से निर्मित है, बन्दीगृह यदि रस्सियों से बंधा होता है तो यह शरीर भी नसों से सम्बद्ध है, बन्दीगृह जहां छत अथवा कबेलू आदि से आच्छादित होता है वहां यह शरीर चमडे से आच्छादित है, बन्दीगृह जिस प्रकार गोबर एवं मिट्टी आदि से लिप्त (लीपा गया) होता है उसी प्रकार यह शरीर रुधिर और मांस से लिप्त है, बन्दीगृह की रक्षा यदि दुष्ट पहरेदार करते हैं तो शरीर की रक्षा दुष्ट कर्मरूप शत्रु करते हैं, तथा बन्दीगृह जहां बडी बडी सांकलों से संयुक्त होता है वहां यह शरीर आयुरूप सांकल से संयुक्त है, इसीलिये जैसे सांकलों के लगे रहने से उसमें से बन्दी (कैदी) बाहिर नहीं निकल सकते हैं उसी प्रकार विवक्षित (मनुष्यादि) आयु कर्म का उदय रहने तक प्राणी भी उस शरीर से नहीं निकल सकता है। इस प्रकार जब बन्दीगृह और शरीर में कुछ भेद नहीं है तब यहां यह उपदेश दिया गया है कि जिस प्रकार कोई भी विचारशील मनुष्य दुखदायक बन्दीगृह में नहीं रहना चाहता है उसी प्रकार हे भव्यजीव! यदि तू भी उस बन्दीगृह के समान कष्टदायक इस शरीर में नहीं रहना चाहता है तो उससे अनुराग न कर॥५९॥