+ बाल सफेद होने का यथार्थ आशय -
पलितच्छलेन देहान्निर्गच्छति शद्धिरेव तव बद्धे: ।
कथमिव परलोकार्थ जरी वराकस्तदा स्मरति ॥८६॥
अन्वयार्थ : हे भव्य ! बालों को धवलता के मिषसे तेरी बुद्धि की निर्मलता ही शरीर से निकलती जा रही है। ऐसी अवस्था में बिचारा वृद्ध उस समय परभव में हित करने वाले कार्यों का कैसे स्मरण कर सकता है ? अर्थात् नहीं कर सकता है ॥८६॥
Meaning : O soul! As your hair is graying, it seems, the purity of your intellect is leaving your body. In this state of affairs,how can a pitiable old man remember his duties for the welfare of his next life?

  भावार्थ 

भावार्थ :

विशेषार्थ- वृद्धावस्था के प्राप्त होने पर बाल सफेद होने लगते हैं। इसके ऊपर यहां यह उत्प्रेक्षा की गई है कि वह बालों की सफेदी क्या है मानों निर्मल बुद्धि ही शरीर से निकलकर बाहिर आ रही है। अभिप्राय उसका यह है कि वृद्धावस्था में जैसे जैसे शरीर शिथिल होता जाता है वैसे ही वैसे प्राणी की बुद्धी भी भ्रष्ट होती जाती है । उस समय उसकी विचारशक्ति नष्ट हो जाती है तथा करने योग्य कार्य का स्मरण भी नहीं रहता है। ऐसी दशा में यदि कोई मनुष्य यह विचार करे कि अभी मैं युवा हूं, इसलिये इस समय इच्छानुसार धन कमाकर विषयसुख का अनुभव करूंगा और तत्पश्चात् वृद्धावस्था के प्राप्त होने पर आत्मकल्याण के मार्ग में लगूंगा । ऐसा विचार करनेवाले प्राणियों को ध्यान में रखकर यहां यह बतलाया है कि वृद्धावस्था में इन्द्रियां शिथिल और बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है तथा व्रत एवं जप-तप आदि करने का शरीर में सामर्थ्य भी नहीं रहता है । इसके अतिरिक्त मृत्यु का भी कोई नियम नहीं है वह वृद्धावस्था के पूर्व में भी आ सकती है । अतएव वृद्धावस्था के ऊपर निर्भर न रहकर उसके पहिले ही, जब कि शरीर स्वस्थ रहता है, आत्मकल्याण के मार्ग में- व्रतादि के आचरण में- प्रवृत्त हो जाना अच्छा है ॥८६॥