
भावार्थ :
विशेषार्थ- विषयतृष्णा का कारण धन-सम्पत्ति है। कारण यह कि उसके होने पर वह विषयभोगाकांक्षा और भी अधिक बढती है । इसीलिये विवेकी जन विषयतृष्णा की मूलभूत उस सम्पत्ति का ही परित्याग करते हैं। प्रकृत श्लोक में उसका परित्याग करने वाले तीन प्रकार के बतलाये गये हैं- (1) पहिले प्रकार के त्यागी वे हैं कि जिन्होंने उस लक्ष्मी को तुच्छ समझते हुए दूसरों (पुत्रादि) को दे करके छोडा है। इन्होंने यद्यपि आत्महित का तो ध्यान रक्खा है, किन्तु जिनके लिये वह दी गई है उनके हित का उन्होंने अनुरागवश ध्यान नहीं रक्खा । (2) दूसरे प्रकार के त्यागी वे हैं कि जिन्होंने उसे पापजनक और तृष्णा को बढानेवाली जानकर स्वयं छोड दिया है तथा दूसरों को भी नहीं दिया है । ऐसे त्यागी अपने समान दूसरों के भी हित का ध्यान रखने के कारण पूर्वोक्त त्यागियों की अपेक्षा श्रेष्ठ होते हैं। (3) तीसरे प्रकार के त्यागी वे हैं कि जिन्होंने अकल्याणकारी समझकर उसे प्रारम्भ में ही नहीं ग्रहण किया। ऐसे त्यागी सर्वोत्कृष्ट त्यागी माने जाते हैं । इसका कारण यह है कि पूर्वोक्त दोनों प्रकार के त्यागियों ने तो भोगने के पश्चात् उसे छोडा है, किन्तु इन्हें उसके स्वरूप को जानकर ही इतनी विरक्ति हुई कि जिससे उन्होंने उसे स्वीकार ही नहीं किया ॥१०२॥ |