
भावार्थ :
विशेषार्थ- किसी व्यक्ति ने भोजन तो बडे आनन्द के साथ किया है, किन्तु यदि पीछे उसे उसमें विषादि की आशंका से घृणा उत्पन्न हो गई है तो इससे या तो उसे स्वयं का हो जाता है; अन्यथा वह प्रयत्नपूर्वक वमन करके उस मुक्त भोजन को निकाल देता है। इसमें वह कष्ट का अनुभव न करके विशेष आनन्द ही मानता है । ठीक इसी प्रकार से जिन विवेकी जनों को परिणाम में अहितकारक जानकर उस सम्पत्ति से घृणा उत्पन्न हो गई है उन्हें उसका परित्याग करनेमें किसी प्रकार का क्लेश नहीं होता, प्रत्युत उन्हें इससे अपूर्व आनन्द का ही अनुभव होता है। उसके परित्याग में कष्ट उन्हीं को होता है जो उसे हितकारी मानकर उसमें अतिशय अनुरक्त रहते हैं ॥१०३॥ |