+ परमात्मा बनने का रहस्य -
अकिंचनोऽहमित्यास्स्व त्रैलोक्याधिपतिर्भवेः ।
योगिगम्यं तव प्रोक्तं रहस्यं परमात्मनः ॥११०॥
अन्वयार्थ : हे भव्य! तू 'मेरा कुछ भी नहीं है' ऐसी भावना के साथ स्थित हो। ऐसा होने पर तू तीन लोक का स्वामी (मुक्त) हो जायगा । यह तुझे परमात्मा का रहस्य (स्वरूप) बतला दिया है जो केवल योगियों के द्वारा प्राप्त करने के योग्य या उनके ही अनुभव का विषय है ॥११०॥
Meaning : O worthy soul! Establish yourself in the thought, ‘nothing belongs to me’. This will make you the lord of the three worlds. Here, I have revealed the secret of the ‘pure-soul’ (paramātmā); such ‘pure-soul’ is realized only by advanced saints (yogī), or, a subject of their realization.

  भावार्थ 

भावार्थ :

विशेषार्थ- अभिप्राय यह है कि पर पदार्थों को अपना समझकर जब तक जीव का उनमें ममत्वभाव रहता है तबतक वह राग-द्वेष से परिणत होकर कर्मों को बांधता हुआ संसारमें परिभ्रमण करता है । और जैसे ही उसका पर पदार्थों से वह ममत्वभाव हटता है वैसे ही वह निर्ममत्व होकर आत्मस्वरूप का चिंतन करता हुआ स्वयं भी परमात्मा बन जाता है ॥११०॥