
विधूततमसो रागस्तपःश्रुतनिबन्धनः ।
संध्याराग इवार्कस्य जन्तोरभ्युदयाय सः ॥१२३॥
अन्वयार्थ : अज्ञानरूप अन्धकार को नष्ट कर देनेवाले प्राणी के जो तप और शास्त्रविषयक अनुराग होता है वह सूर्य को प्रभातकालीन लालिमा के समान उसके अभ्युदय के लिये होता है ॥१२३॥
Meaning : The attachment in respect of austerities and the Scripture that the ascetic who has destroyed the darkness of ignorance retains is like the red light emanating from the sun at the break of dawn; soon it becomes bright as the sun rises.
भावार्थ
भावार्थ :
विशेषार्थ- जिस प्रकार प्रभातकाल में उदित होनेवाले सूर्य की लालिमा उसकी अभिवृद्धि का कारण होती है उसी प्रकार अज्ञान से रहित हुए विवेकी जीव का भी तप एवं श्रुत से सम्बद्ध अनुराग उसकी अभिवृद्धि का- स्वर्ग-मोक्ष की प्राप्ति का कारण होता है। जो अनुराग हानि (दुर्गति) का कारण होता है वह अज्ञानी का ही होता है और वह भी विषयभोगविषयक अनुराग विवेकी (सम्यग्दृष्टि) जीव का वह तप आदिविषयक अनुराग कभी हानि का कारण नहीं हो सकता है॥१२३॥
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