+ मुक्ति-स्त्री से ही अनुराग की प्रेरण -
एतामुत्तमनायिकामभिजनावर्ज्यां जगत्प्रेयसीं
मुक्तिश्रीललनां गुणप्रणयिनीं गन्तुं तवेच्छा यदि ।
तां त्वं संस्कुरु वर्जयान्यवनितावार्तामपि प्रस्फुतटं
तस्यामेव रतिम् तनुष्व नितरां प्रायेण सेर्ष्याः स्त्रियः ॥१२८॥
अन्वयार्थ : हे भव्य ! जो यह मुक्तिरूप सुन्दर महिला उत्तम नायिका है, कुलीन जनों को ही प्राप्त हो सकती है, विश्व की प्रियतमा है, तथा गुणों से प्रेम करनेवाली है; उसको प्राप्त करने की यदि तेरी इच्छा है तो तू उसको संस्कृत कर- रत्नत्रयरूप अलंकारों से विभूषित कर- और दूसरी (लोक प्रसिद्ध) स्त्री की बात भी न कर । केवल तू उसके विषय में ही अतिशय अनुराग कर; क्योंकि, स्त्रियां प्रायः ईर्ष्यालु होती हैं ॥१२८॥
Meaning : O worthy soul! That beautiful and high-born woman, called ‘mukti’ or ‘liberation’, can only be had by noble men. She is the love of the whole world and a lover of virtues. Adorn her with the ornament of the Three Jewels (ratnatraya), if you desire to have her. Do not even talk of any other (worldly) woman. Have excessive love solely for her, since women, in general, are jealous.

  भावार्थ 

भावार्थ :

विशेषार्थ- एक ओर लोकप्रसिद्ध स्त्री है और दूसरी ओर मुक्तिरूपी अपूर्व स्त्री है। इनमें लोकप्रसिद्ध स्त्री जहां कुलीन एवं अकुलीन सब ही जनों को प्राप्त हो सकती है वहां मुक्ति ललना केवल कुलीन जन को ही प्राप्त हो सकती है वह नीच एवं दुराचारी जनों को दुर्लभ है । लौकिक स्त्री केवल कामी जनों को ही प्यारी होती है, परन्तु मुक्ति-कान्ता समस्त विश्व को ही प्यारी है । लौकिक स्त्री जहां केवल धन-सम्पत्ति आदि में ही अनुराग रखती है वहां मुक्ति-सुन्दरी केवल उत्तमोत्तम गुणों में ही अनुराग रखती है। लौकिक स्त्री से यदि ऐहिक क्षणिक सुख प्राप्त होता है तो मुक्ति-रमणी से पारलौकिक अविनश्वर सुख प्राप्त होता है। इस प्रकार से इन दोनों का स्वभाव सर्वथा भिन्न है । अतएव जो लौकिक स्त्रीको चाहता है उसे मुक्ति-वल्लभा दुर्लभ है तथा जो मुक्ति-वल्लभा को चाहता है उसे लौकिक स्त्री से मोह छोडना पडता है, कारण कि इसके बिना वह प्राप्त हो ही नहीं सकती है। इसीलिये तो यह नीति प्रसिद्ध है कि स्त्रियां प्रायः करके अत्यन्त ईर्ष्यायुक्त होती हैं। ऐसी स्थिति में जो भव्य मुक्ति-रमा को चाहता है उसे लौकिक स्त्री की चाह तो दूर रही, किन्तु उसे उसका नाम भी नहीं लेना चाहिये, इसके अतिरिक्त लौकिक स्त्री को प्रसन्न करने के लिये जिस प्रकार उसे कटिसूत्र, केयूर एवं हार आदि अलंकारोंसे अलंकृत किया जाता है उसी प्रकार मुक्ति-कान्ता को प्रसन्न करने के लिये उसे सम्यग्दर्शनादिरूप रत्नमय आभूषणों से विभूषित करना चाहिये ॥१२८॥