
भावार्थ :
विशेषार्थ- एक ओर लोकप्रसिद्ध स्त्री है और दूसरी ओर मुक्तिरूपी अपूर्व स्त्री है। इनमें लोकप्रसिद्ध स्त्री जहां कुलीन एवं अकुलीन सब ही जनों को प्राप्त हो सकती है वहां मुक्ति ललना केवल कुलीन जन को ही प्राप्त हो सकती है वह नीच एवं दुराचारी जनों को दुर्लभ है । लौकिक स्त्री केवल कामी जनों को ही प्यारी होती है, परन्तु मुक्ति-कान्ता समस्त विश्व को ही प्यारी है । लौकिक स्त्री जहां केवल धन-सम्पत्ति आदि में ही अनुराग रखती है वहां मुक्ति-सुन्दरी केवल उत्तमोत्तम गुणों में ही अनुराग रखती है। लौकिक स्त्री से यदि ऐहिक क्षणिक सुख प्राप्त होता है तो मुक्ति-रमणी से पारलौकिक अविनश्वर सुख प्राप्त होता है। इस प्रकार से इन दोनों का स्वभाव सर्वथा भिन्न है । अतएव जो लौकिक स्त्रीको चाहता है उसे मुक्ति-वल्लभा दुर्लभ है तथा जो मुक्ति-वल्लभा को चाहता है उसे लौकिक स्त्री से मोह छोडना पडता है, कारण कि इसके बिना वह प्राप्त हो ही नहीं सकती है। इसीलिये तो यह नीति प्रसिद्ध है कि स्त्रियां प्रायः करके अत्यन्त ईर्ष्यायुक्त होती हैं। ऐसी स्थिति में जो भव्य मुक्ति-रमा को चाहता है उसे लौकिक स्त्री की चाह तो दूर रही, किन्तु उसे उसका नाम भी नहीं लेना चाहिये, इसके अतिरिक्त लौकिक स्त्री को प्रसन्न करने के लिये जिस प्रकार उसे कटिसूत्र, केयूर एवं हार आदि अलंकारोंसे अलंकृत किया जाता है उसी प्रकार मुक्ति-कान्ता को प्रसन्न करने के लिये उसे सम्यग्दर्शनादिरूप रत्नमय आभूषणों से विभूषित करना चाहिये ॥१२८॥ |