
वचनसलिलैर्हासस्वच्छैस्तरङ्गसुखोदरैः
वदनकमलैर्बाह्ये रम्याः स्त्रियः सरसीसमाः।
इह हि बहवः प्रास्तप्रज्ञास्तटेऽपि पिपासवो
विषयविषमग्राहग्रस्ताः पुनर्न समुद्गताः ॥१२९॥
अन्वयार्थ : वे स्त्रियां सरसी के समान बाहिर से ही रमणीय दिखती हैं- सरसी जिस प्रकार चंचल तरंगों से युक्त स्वच्छ जल एवं कमलों से सुशोभित होती है उसी प्रकार वे स्त्रियां भी तरंगों के समान चंचल सुख को उत्पन्न करने वाले हास्ययुक्त मनोहर वचनोंरूप जल से तथा मुखरूप कमलों से रमणीय होती हैं । जिस प्रकार बहुत-से बुद्धिहीन प्राणी प्यास से पीडित होकर सरोवर पर जाते हैं और किनारे पर ही भयानक हिंस्र जलजन्तुओं के ग्रास बनकर- उनके द्वारा मरण को प्राप्त होकर-फिर नहीं निकल पाते हैं उसी प्रकार बहुत-से अज्ञानी प्राणी भी विषयतृष्णा से व्याकुल होकर उन स्त्रियों के पास पहुंचते हैं और हिंस्र जलजन्तुओं के समान अतिशय भयानक विषयों से ग्रस्त होकर- उनमें अतिशय आसक्त होकर-फिर नहीं निकलते अर्थात् नरकादि दुर्गतियों में पडकर फिर उत्तम मनुष्यादि पर्याय को नहीं पाते हैं ॥१२९॥
Meaning : Women, like lakes, are only outwardly pretty to look at. As lakes look pretty with waves of clear water and lotuses, women, too, have lovely talk and laughter , and charming faces . As many foolish men, inflicted by thirst, enter the lakes from their banks and get swallowed by cruel water-animals, similarly, many ignorant men, inflicted by sensual-desire, go near the women and get killed by excessive lust. They are pushed into deplorable states of existence, like the infernal state of existence. It is extremely difficult to yet again get birth as a human being.
भावार्थ