
भावार्थ :
विशेषार्थ- दुष्ट अहेरी मृगादिकों का घात करने के लिये उनके निवासस्थान के चारों ओर आग जला देते हैं जिससे वे भयभीत होकर रक्षा की दृष्टि से उस स्थान को प्राप्त होते हैं जो कि अहेरियों के द्वारा उनका ही घात करने के लिये बनाया गया है। इस प्रकार से वे वहां जाकर उनके द्वारा मारे जाते हैं ठीक इसी प्रकार से उन अहेरियों के समान दुष्ट इन्द्रियां इस संसार में प्राणियों को विषयासक्त करने के लिये उन विषयों के प्रति राग को उत्पन्न कराती हैं, जिससे व्याकुल होकर वे प्राणी उन मृगों के ही समान शान्ति प्राप्त करने की इच्छा से उस स्त्रीरूप घातस्थान को प्राप्त होते हैं जो मानों उनके नष्ट-भ्रष्ट करने के लिये ही बनाया गया है। अभिप्राय यह है जिस प्रकार हिरण अज्ञानता से अपना ही वध कराने के लिये शिकारियों द्वारा निर्मित वधस्थान में जा फंसते हैं उसी प्रकार ये अविवेकी प्राणी भी विषयतृष्णा के वशीभूत होकर उसको शान्त करने की इच्छा से स्त्री का आश्रय लेते हैं । परन्तु होता है उससे विपरीत- जिस विषयतृष्णा को वे शान्त करना चाहते थे वह स्त्री का आश्रय पाकर उत्तरोत्तर अधिकाधिक वृद्धि को ही प्राप्त होती है । परिणाम यह होता है कि इस प्रकार विषयविमूढ होकर प्राणी धर्माचरण को भूल जाता है और पाप का संचय करता है जिससे कि वह दुर्गति में पडकर अनेक दुःखों को भोगता है ॥१३०॥ |