
भावार्थ :
विशेषार्थ- लोक में सबसे छोटा परमाणु समझा जाता है। परन्तु विचार करें तो याचक को उस परमाणु से भी छोटा (तुच्छ) समझना चाहिये। कारण यह कि याचना करने से उसके सब ही उत्तम गुण नष्ट हो जाते हैं । वह दीन बनकर सबके मुंह की ओर देखता है, परन्तु उसकी ओर कोई दृष्टिपात भी नहीं करता। इस प्रकार उसकी सब प्रतिष्ठा जाती रहती है । इसके विपरीत आकाश से कोई बड़ा नहीं माना जाता है । परन्तु यथार्थ में देखा जाय तो जो स्वाभिमानी दूसरे से याचना नहीं करता है उसे इस आकाश से भी बडा (महान्) समझना चाहिये। इस अयाचक वृति में उसके सब गुण सुरक्षित रहते हैं। स्वाभिमानी संकट में पडकर भी उस दुख को साहसपूर्वक सहता है, किन्तु कभी किसी से याचना नहीं करता। अभिप्राय यह कि याचना की वृत्ति मनुष्य को अतिशय हीन बनाने वाली है॥१५२॥ |