+ कौन दीन और कौन अभिमानी -
परमाणोः परं नाल्पं नभसो न महत्परम् ।
इति ब्रुवन् किमद्राक्षीन्नेनौ दीनाभिमानिनौ ॥१५२॥
अन्वयार्थ : परमाणु से दूसरा कोई छोटा नहीं है और आकाश से दूसरा कोई बड़ा नहीं है, ऐसा कहलाने वाले क्या इन दीन और अभिमानी मनुष्यों को नहीं देखा है ? ॥१५२॥
Meaning : ‘Nothing is smaller than the atom (paramāõu) and bigger than the sky (nabha).’ The one who says this has not seen the men who plead (for favours) and the men who are self-respecting.

  भावार्थ 

भावार्थ :

विशेषार्थ- लोक में सबसे छोटा परमाणु समझा जाता है। परन्तु विचार करें तो याचक को उस परमाणु से भी छोटा (तुच्छ) समझना चाहिये। कारण यह कि याचना करने से उसके सब ही उत्तम गुण नष्ट हो जाते हैं । वह दीन बनकर सबके मुंह की ओर देखता है, परन्तु उसकी ओर कोई दृष्टिपात भी नहीं करता। इस प्रकार उसकी सब प्रतिष्ठा जाती रहती है । इसके विपरीत आकाश से कोई बड़ा नहीं माना जाता है । परन्तु यथार्थ में देखा जाय तो जो स्वाभिमानी दूसरे से याचना नहीं करता है उसे इस आकाश से भी बडा (महान्) समझना चाहिये। इस अयाचक वृति में उसके सब गुण सुरक्षित रहते हैं। स्वाभिमानी संकट में पडकर भी उस दुख को साहसपूर्वक सहता है, किन्तु कभी किसी से याचना नहीं करता। अभिप्राय यह कि याचना की वृत्ति मनुष्य को अतिशय हीन बनाने वाली है॥१५२॥