
भावार्थ :
विशेषार्थ- जिस समय याचक किसी दाता के यहां पहुंचकर उससे कुछ याचना करता है और तदनुसार वह दाता उसे कुछ देता भी है उस समय उन दोनों के मुख पर अलग अलग भाव अंकित दिखते हैं। उस समय जहां याचक के मुख पर दीनता, संकोच एवं कृतज्ञता का भाव दृष्टिगोचर होता है, वहां दाता के मुख पर प्रफुल्लता एवं अभिमान का भाव स्पष्टतया देखने में आता है। इसके ऊपर यहां यह उत्प्रेक्षा की गई है कि उस समय मानों याचक का आत्मगौरव उसके पास से निकलकर दाता के पास ही चला जाता है। तभी तो उन दोनों में यह विषमता देखी जाती है, अन्यथा इसके पूर्व में तो दोनों समान ही थे । तात्पर्य यह कि याचना का कार्य अतिशय हीन एवं निन्द्य है ॥१५३॥ |