+ वाञ्छक और अवाञ्छक की स्थिति -
अधो जिघृक्षवो यान्ति यान्त्यूर्ध्वमजिघृक्षवः।
इति स्पष्टं वदन्तौ वा नामोन्नामौ तुलान्तयोः ॥१५४॥
अन्वयार्थ : तराजू के दोनों ओर क्रम से होने वाला नीचापन और ऊंचापन स्पष्टतया यह प्रगट करता है कि लेने की इच्छा करने वाले प्राणी नीचे और न लेने की इच्छा करने वाले ऊपर जाते हैं ॥१५४॥
Meaning : The two pans of the scale, one going up and the other down, clearly indicate that the man who desires to take is on the pan that goes down – he becomes downcast – and the man who does not desire to take is on the pan that goes up – he becomes exalted.

  भावार्थ 

भावार्थ :

विशेषार्थ- जिस प्रकार तराजू के एक ओर जब कोई वस्तु रक्खी जाती है तो उधर का भाग नीचा और दूसरी ओर का खाली भाग ऊंचा हो जाता है उसी प्रकार जो मनुष्य दूसरे से याचना करके कुछ ग्रहण करता है वह नीचेपन (हीनता) को प्राप्त होता है तथा जो दाता देता है वह उत्कृष्टता को प्राप्त करता है। इस प्रकार से तराजू भी मानों यही शिक्षा देती है॥१५४॥