+ राग-द्वेष का कारण -
मोहबीजाद्रतिदद्वेषौ बीजान्मूलाङ्कुराविव ।
तस्माज्ज्ञानाग्निना दाह्यं तदेतौ निर्दिधिक्षुणा ॥१८२॥
अन्वयार्थ : जिस प्रकार बीज से जड और अंकुर उत्पन्न होते हैं उसी प्रकार मोहरूप बीज से राग और द्वेष उत्पन्न होते हैं । इसलिये जो इन दोनों (राग-द्वेष) को जलाना चाहता है उसे ज्ञानरूप अग्नि के द्वारा उस मोहरूप बीजको जला देना चाहिये ॥१८२॥
Meaning : Just as the seed produces root and shoot, in the same way, the seed of delusion (moha) produces attachment (rāga) and aversion (dveÈa). If you wish to burn down these two, attachment (rāga) and aversion (dveÈa), burn down the seed of delusion (moha) by the fire of knowledge (jñāna).

  भावार्थ 

भावार्थ :

विशेषार्थ- जिस प्रकार वृक्ष की जड और अंकुर का कारण बीज है उसी प्रकार राग और द्वेष की उत्पत्ति का कारण मोह (अविवेक) है अतएव जो वृक्ष के अंकुर और जड को नहीं उत्पन्न होने देना चाहता है वह जिस प्रकार उक्त वृक्ष के बीज को ही जला देता है। उसी प्रकार जो आत्महितैषी उन राग और द्वेष को नहीं उत्पन्न होने देना चाहता है उसे उनके कारण भूत उस मोह को ही सम्यग्ज्ञानरूप अग्नि के द्वारा जलाकर नष्ट कर देना चाहिये । इस प्रकार से वे राग-द्वेष फिर न उत्पन्न हो सकेंगे ॥१८२॥