
पुराण ग्रहदोषोत्थो गम्भीरः सगतिः सरुक् ।
त्यागजात्यादिना मोहव्रणः शुद्धयति रोहति ॥१८३॥
अन्वयार्थ : मोह एक प्रकार का घाव है, क्योंकि वह घाव के समान ही पीडाकारक है । जिस प्रकार पुराना , शनि आदि ग्रह के दोष से उत्पन्न हुआ, गहरा, नस से सहित और पीडा देने वाला घाव औषधयुक्त घी आदि से शुद्ध होकर- पीव आदि से रहित होकर- भर जाता है उसी प्रकार पुराना अर्थात् अनादिकाल से जीव के साथ रहने वाला, परिग्रह के ग्रहणरूप दोष से उत्पन्न हुआ, गम्भीर , नरकादि दुर्गति का कारण और आकुलतारूप रोग से सहित ऐसा वह घाव के समान कष्टदायक मोह भी उक्त परिग्रह के परित्यागरूप मलहम से शुद्ध होकर ऊर्ध्वगमन में सहायक होता है ॥१८३॥
Meaning : Delusion is like a wound, similarly painful. Just as the old, demon-inflicted, deep, fluid-oozing, and painful wound is cleaned and healed by the ointment of clarified butter , etc., in the same way, the wound of delusion, which too is old , inflicted by the demon of attachment-to-possessions, deep , cause of adverse states of existence, and a source of anguish, is cleaned and healed by the ointment of renunciation. Upon its healing, the soul moves to the summit of the universe.
भावार्थ