
भावार्थ :
विशेषार्थ- यदि किसी कुटुम्ब में स्थित व्यक्ति के माता-पिता, भाई-बन्धु एवं मित्र आदि सब ही प्रतिकूल स्वभाववाले हों तो ऐसे कुटुम्बसे सम्बन्ध रखनेवाले उस व्यक्ति से किसीको भी अनुराग नहीं रहता है। परन्तु आश्चर्य की बात है कि यह अज्ञानी प्राणी ऐसे प्रतिकूल कुटुम्ब के बीच में रहने वाले शरीर से भी कुछ आशा रखता हुआ उससे अनुराग करता है। उस शरीर के कुटुम्ब में उत्पत्ति (जन्म) माता और मरण पिता है जो परस्पर खूब अनुराग रखते हैं एक के बिना दूसरा नहीं रहना चाहता है । जीव को जो शारीरिक एवं मानसिक कष्ट होते हैं वे उस शरीर के सहोदर हैं- उसके साथ में ही उत्पन्न होने वाले हैं। बुढापा उसका प्यारा मित्र है। अभिप्राय यह है कि जिस शरीरके साथ जीव को निरन्तर जन्म-मरण, रोग, चिंता एवं बुढापा आदि के दुःसह दुख सहने पडते हैं उससे अनुराग न रखकर उसे सदा के लिये ही छोड देने (मुक्त होने) का प्रयत्न करना चाहिये ॥२०१॥ |