+ कषायों के रहते हुए गुणों की प्राप्ति होना दुर्लभ -
हृदयसरसि यावन्निर्मलेऽप्यत्यगाधे
वसति खलु कषायग्राहचक्रं समन्तात् ।
श्रयति गुणगुणोऽयं तन्न तावद्विशङ्कं
सयमशमविशेषस्तान् विजेतुं यतस्व ॥२१३॥
अन्वयार्थ : निर्मल और अथाह हृदयरूप सरोवर में जब तक कषायोंरूप हिंस्र जल जन्तुओं का समूह निवास करता है तब तक निश्वय से यह उत्तम क्षमादि गुणों का समुदाय निःशंक होकर उस हृदयरूप सरोवर का आश्रय नहीं लेता है । इसीलिये हे भव्य ! तू व्रतों के साथ तीव्र-मध्यमादि उपशम भेदों से उन कषायों के जीतने का प्रयत्न कर ॥२१३॥
Meaning : As long as cruel water-animals, in form of cluster of passions (kaÈāya), exist in your pristine and unfathomable lake of the heart (the mind), certainly, fearless existence of cluster of virtues, in form of forbearance, etc., is not possible. Therefore, O worthy soul! With observance of vows (yama) and tranquility (śama), strive to subjugate those passions.

  भावार्थ 

भावार्थ :