
हित्वा हेतुफले किलात्र सुधियस्तां सिद्धिमामुत्रिकीं
वाञ्छन्तः स्वयमेव साधनतया शंसन्ति शान्तं मनः।
तेषामाखुबिडालिकेति तदिद्धं धिधिक्कलेः प्राभवं
येनैतेऽपि फलद्वयप्रलयनाद् दूरं विपर्यासिताः ॥२१४॥
अन्वयार्थ : जो विद्वान् परिग्रह के त्यागरूप हेतु तथा उसके फलभूत मन की शान्ति को छोडकर उस पारलौकिक सिद्धि की अभिलाषा करते हुए स्वयं ही उसके साधनस्वरूप से शान्त मन की प्रशंसा करते हैं उनका यह कार्य आखु-बिडालिका के समान है । यह सब कलिकाल का प्रभाव है, उसके लिये धिक्कार हो। इस कलिकाल के प्रभाव से ये विद्वान् भी इस लोक और परलोक सम्बन्धी फल को नष्ट करने से अतिशय ठगे जाते हैं॥२१४॥
Meaning : The ‘wise’ men desire perfection hereafter, but without appreciating that renouncing attachment-topossessions is the cause and tranquility of the mind, the effect , they harp just on tranquility of their mind. Their conduct has inherent contradiction, like that apparent in the cat and the mouse. This is the effect of the kali age . Fie on such ‘wise’ men; they greatly deceive themselves as they get deprived of enjoyment in this world as well as the next.
भावार्थ
भावार्थ :
विशेषार्थ- जिन्होंने न तो परिग्रह को छोडा है और न कषायों को भी उपशान्त किया है वे विद्वान् पारलौकिक सिद्धि की अभिलाषा करके उसके साधन भूत अपने शान्त मन की केवल प्रशंसा करते हैं। उनके इन दोनों कार्यों में बिल्ली और चूहे के समान परस्पर जातिविरोध है । कारण कि जब तक परिग्रह और राग-द्वेषादि का परित्याग नहीं किया जाता है तब तक मन शान्त हो ही नहीं सकता। ऐसे लोग इस लोक और परलोक दोनों ही लोकों के सुख को नष्ट करते हैं ।इस लोक के सुख से तो वे इसलिये वंचित हुए कि उन्होंने बाह्य विषयों को छोड़ दिया है । साथ ही चूंकि वे अपने मन को शान्त कर नहीं सके हैं, इसलिये पाप कर्म का उपार्जन करने से परलोक के भी सुख से वंचित होते हैं ॥२१४॥
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