
भावार्थ :
विशेषार्थ- अतिवृष्टि, अनावृष्टि, शलभ (टिड्डी), चूहा, तोता, स्वचक्र और परचक्र (अतिवृष्टिरनावृष्टिः शलभा मूषका शुकाः । स्वचक्र परचक्र व सप्तैता ईतयः स्मृताः ॥ ) ये सात ईति मानी जाती हैं। जिस प्रकार इन ईतियों में से कोई भी ईति यदि खेत के मध्यमें उत्पन्न होती है तो वह उस खेत को (फसल को) नष्ट कर देती है। इससे वह कृषक कृषी के फल (अनाज) को नहीं प्राप्त कर पाता है। इसी प्रकार तपस्वी को यदि शरीर के विषय में अनुराग है और इसीलिये यदि वह यह समझता है कि यह शरीर मेरा है और मैं इसका स्वामी हूं तो उसका वह अनुराग ईति के समान उपद्रवकारी होकर तप के फल को- मोक्ष को- नष्ट कर देता है ॥२४२॥ |