+ प्रतिज्ञाओं के बाँध से तपरूपी सरोवर की सुरक्षा -
महातपस्तडागस्य संभृतस्य गुणाम्भसा।
मर्यादापालिबन्धेऽल्पामप्युपेक्षिष्ट मा क्षतिम् ॥२४७॥
अन्वयार्थ : हे साधो ! गुणरूप जल से परिपूर्ण महातपरूप तालाब के प्रतिज्ञारूप पालिबंध (बांध) के विषय में तू थोडी-सी भी हानि की उपेक्षा न कर॥२४७॥
Meaning : O ascetic! Your great austerities (vows of asceticism) are like a reservoir filled with the water of your qualities (like right faith). Do not overlook even the slightest of breach in its embankment, i.e., your vows, etc.

  भावार्थ 

भावार्थ :

विशेषार्थ- मुनिधर्म एक तालाब के समान है। जिस प्रकार तालाब जल से परिपूर्ण होता है उसी प्रकार वह मुनिधर्म सम्यग्दर्शनादि गुणों से परिपूर्ण होता है । यदि तालाब का बांध कहीं थोडा सा भी गिर जाता है तो उसमें फिर पानी स्थिर नहीं रह सकता है । इसीलिये बुद्धिमान् मनुष्य सावधानी के साथ उसको ठीक करा देता है । ठीक इसी प्रकार से यदि साधुधर्म में भी की गई व्रतपरिपालन की प्रतिज्ञा में कुछ त्रुटि होती है तो बुद्धिमान् साधु को उसकी उपेक्षा न करके उसे शीघ्र ही प्रायश्चित्त आदि के विधान से सुधार लेना चाहिये । अन्यथा उसके सम्यग्दर्शनादि गुण स्थिर न रह सकेंगे॥२४७॥