+ ग्रन्थ के अभ्यास का फल -
इति कतिपयवाचां गोचरीकृत्य कृत्यं
रचितमुचितमुच्चैश्चेतसां चितरम्यम् ।
इदमविकलमन्तः संततं चिन्तयन्तः
सपदि विपदपेतामाश्रयन्ते श्रियं ते ॥२६८॥
अन्वयार्थ : इस प्रकार कुछ थोडे-से वचनों का विषय करके उनका आश्रय ले करके- जो यह योग्य कृत्य-अनुष्ठान के योग्य चार प्रकार की आराधना का स्वरूप-रचा गया है वह उदार विचार वाले मनुष्यों के चित्त को आनन्द देने वाला है । जो भव्य जीव इसका निरन्तर पूर्णरूप से चित्त में चिन्तन करते हैं वे शीघ्र ही समस्त विपत्तियों से रहित मोक्षरूप लक्ष्मी का आश्रय करते हैं ॥२६८॥
Meaning : This way, using a few words, this useful work (for performance of the four adorations*) has been composed. This will be enchanting to the hearts of the men with noble thoughts. May the potential-souls (bhavya), who ponder this composition continuously and wholly, soon get rid of all adversities and attain the LakÈmī of liberation!

  भावार्थ 

भावार्थ :