भयवसणमलविवज्ज्दि-संसारसरीरभोगणिव्विण्णो ।
अठ्ठगुणंगसमग्गो, दंसणसुद्धो हु पंचगुरुभत्तो ॥5॥
भयव्यसनमलविवर्जित-संसारशरीरभोगनिर्विण्ण: ।
अष्टगुणाङ्गसमग्र: दर्शनशुद्ध: खलु पञ्चगुरुभक्त:॥
अन्वयार्थ : सम्यग्दर्शन से शुद्ध जीव ही भयों, व्यसनों, मलों से रहित होता है, संसार, शरीर व भोगों से विरक्त होता है, आठ गुणों से परिपूर्ण तथा पाँच गुरुओं का भक्त होता है ॥5॥