दाण ण धम्म ण चाग ण, भोग ण बहिरप्प जो पयंगो सो ।
लोहकसायग्गिमुहे पडिदो मरिदो ण संदेहो ॥12॥
दानं न धर्म: न त्याग: न, भोगो न बहिरात्मा य: पतङ्ग: स: ।
लोभकषायाग्निमुखे पतित: मृतो न सन्देह:॥
अन्वयार्थ : जो दान नहीं करता, धर्म नहीं करता, त्याग भी नहीं करता और भोगभी नहीं करता, ऐसा बहिरात्मा (एक) पतंगा (टिड्डा) (जैसा) होता है । वह नि:सन्देहलोभ कषाय की आग में गिरकर मृत्यु को प्राप्त होता है ॥12॥