जिणपूया मुणिदाणं करमदि जो देदि सत्तिरूवेण ।
सम्मादिठ्ठी सावयधम्मी सो मोक्खमग्गरओ ॥13॥
जिनपूजां मुनिदानं करोति यो ददाति शक्तिरूपेण ।
सम्यग्दृष्टि: श्रावकधर्मी स मोक्षमार्गरत:॥
अन्वयार्थ : जो यथाशक्ति जिनपूजा करता है और मुनियों को (आहारादि का) दानदेता है, वह श्रावक-धर्म का पालन करनेवाला मोक्षमार्ग में रत या स्थित सम्यग्दृष्टि होता है ॥13॥