पूयफलेण तिलोक्के सुरपुज्जे हवदि सुद्धमणो ।
दाणफलेण तिलोए सारसुहं भुंजदे णियदं ॥14॥
पूजाफलेन त्रैलोक्ये सुरपूज्यो भवति शुद्धमना: ।
दानफलेन त्रिलोके सारसुखं भुंक्ते नियतम्॥
अन्वयार्थ : शुद्ध मन (भावशुद्धि) वाला (श्रावक) पूजा के फल से त्रैलोक्य मेंदेवों का (भी) पूज्य हो जाता है । दान के फल से तीनों लोकों के उत्तम सुख को निश्चित रूपसे भोगता है ॥14॥