दाणं भोयणमेत्ते दिण्णदि धण्णो हवेदि सायारो ।
पत्तापत्तविसेसं सद्दंसणे किं वियारमण ॥15॥
दानं भोजनमात्रं ददाति (दीयते), धन्यो भवति सागार: ।
पात्रापात्रविशेषं सद्दर्शने किं विचारमण॥
अन्वयार्थ : जो भोजन मात्र दान देता है या उसके द्वारा दिया जाता है, इतने सेसागार (गृहस्थ श्रावक) धन्य हो जाता है । प्रशस्त दर्शन (जिन-मुद्रा) को देखकर पात्र वअपात्र का विचार (विकल्प) क्या करना? (अर्थात् नहीं करना) ॥15॥