खेत्तविसेसे काले वविदसुवीयं फलं जहा विउलं ।
होदि तहा तं जाणह पत्तविसेसेसु दाणफलं ॥17॥
क्षेत्रविशेषे काले उप्तं सुबीजं फलं यथा विपुलम् ।
भवति तथा तत् जानीहि पात्रविशेषेषु दानफलम्॥
अन्वयार्थ : क्षेत्रविशेष में या कालविशेष में बोया गया बीज जिस प्रकार विपुल फलदेने वाला होता है, उसी प्रकार पात्र-विशेष में दिये गये दान के फल को भी वैसा समझो ॥17॥