इह णियसुवित्तबीयं जो ववदि जिणुत्तसत्तखेत्तेसु ।
सो तिहुवणरज्ज्फलं भुंजदि कल्लाणपंचफलं ॥18॥
इह निजसुवित्तबीजं यो वपति जिनोक्तसप्तक्षेत्रेषु ।
स त्रिभुवनराज्यफलं भुंक्ते कल्याणपञ्चकफलम्॥
अन्वयार्थ : जिनेन्द्र द्वारा प्रतिपादित सात विशेष क्षेत्रों में जो अपने समीचीन धनरूपी बीज को बोता है, वह त्रिभुवन का राज्य तथा पंचकल्याणक । इन फलों का भोग भोगता है ॥18॥