सत्तंगरज्ज्-णवणिहिभंडार-छडंगबल-चउद्दहरयणं ।
छण्णवदिसहस्सित्थि-विहवं जाणह सुपत्तदाणफलं ॥20॥
सप्ताङ्गराज्य -नवनिधिभाण्डार -षडङ्गबल-चतुर्दशरत्नानि ।
षण्णवतिसहस्रस्त्री-विभवं जानीहि सुपात्रदानफलम्॥
अन्वयार्थ : सप्ताङ्ग राज्य, नव निधियों का भण्डार, छ: अंगों से सम्पन्न सेना-बल,चौदह रत्न और छियानवे हजार रानियाँ । इस वैभव को सुपात्रदान का फल जानो ॥20॥